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रविवार, 14 अगस्त 2011

बुन्देलखण्ड की कजलियाँ


          आज अपयें बुन्देलखण्ड में कजली को त्यौहार बहुतईं जोर-शोर से मनाओ जात है। सबईं जनन को कजली की बधाइयाँ पहुँचैं। हमाओ बिचार ऐसो है कि बहुतई जनन को जा त्यौहार के बारै में पतई नईं हुईये। ऐसौ जासै है कि कायेसे अब न तौ कौनउ बताबै बारौ है और न आजकल के मोड़ा-मोडि़यन को इत्ती फुर्सत है कि बे सबईं बुन्देलखण्ड के लोक-पर्वन के बारै में पतौ करैं।
          चलो कौनउ बात नईयाँ, जबईं जाग जाऔ तभईं सबेरो हो जात है।

का होत है कजलिया

          कजली बुन्देलखण्ड क्षेत्र में लोकपरम्परा-बिस्वास को पर्व मानौ जात है। पैलें तो अपन सब जनैं जा समझ लैओ कि जा कजली होत का है। देखो जाये तो जो त्यौहार विशेषरूप से इतै की खेती-किसानी से जुड़ौ है। जा त्यौहार में घर-मुहाल की बैइरनें (औरतें) हिस्सा लेती हैं। साउन के महीना की नौमी से जाकौ अनुष्ठान सुरू हो जात है। सबसें पैंला कितउँ बाहर मैदान से सबईं जनीं मट्टी खोद के लियातीं हैं। जा मट्टी कौ गा-बजा कै पूजन करतीं हैं और बाकै बादमें नाउन से छोयले के दोना मँगवा कै बामें जा मट्टी धर देतीं हैं। अब जामैं गेंहू और जौ को बो दऔ जात है। घर की जनीं रोजई सबेरे इन दोनन में दूध-पानी चढ़ाउतीं हैं, इनकी पूजा करतीं हैं। बाद में साउन महीना की पूनौ कों इन दोनन को सबईं बैइरनें अपने पासई के तलबा पै लै जातीं हैं। उतै पै सबईं कजली गीत गाउत भईं कजली खोंट लतीं हैं और सबईं दोनन को तलबा में सिरा देती हैं। खोंटीं भई कजलियाँ सबईं आदमियन-औरतन-बच्चन को बाँटी जातीं हैं और इनै आदर से सर-माथै पै लगाऔ जात है। कहूँ-कहूँ जई कजलियन को भुंजरियउ कहो जात है।

          खेती-किसानी के अच्छे से होबै के लानै जो कजली को त्यौहार मनाऔ जात हतौ पर बाद में महोबा में जा दिना भई लड़ाई के बाद सें, एक ऐतिहासिक घटना होबै के बाद से जाये विजयात्सव के रूप में मनाऔ जान लगो है।

का हतो किस्सा जा कजलियन कौ 

          महोबे के राजा हतै राजा परमाल, उनकी बिटिया राजकुमारी चन्द्रावलि को उठाबै कै लानै दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबे पै चढ़ाई कर दई हती। राजकुमारी उतै कै कीरत सागर ताल पै कजली सिराबै कै लानै अपनी सबईं सखी-सहेलियन के संगै जा रई हती। राजकुमारी कौ पृथ्वीराज उठा न पाबै जाकै लानै बा राज्य के बीर-बाँकुर आल्हा और ऊदल नै अपनौ अचम्भै में डारबै बारौ पराकरम दिखलाऔ हतौ। इन दोउ बीरन के संगै-संगै चन्द्रावलि को ममैरौ भइया बीर अभई उरई सै जा पहुँचै हतौ। 

          कीरत सागर ताल के पासई में होन बारी जा लड़ाई में अभई बीरगति को प्यारौ भऔ, राजा परमाल को एक बेटा रंजीतउ सहीद भऔ। कही तौ जउ जात है कि अभई जैसौ बीर सर कटबै के बादउ बहुतईं देर तक लड़ाई लड़त रऔ। बाद में आल्हा, ऊदल, लाखन, ताल्हन, सैयद राजा परमाल कौ लड़का ब्रह्मा, जगनिक जैसें बीरन ने पृथ्वीराज की सेना को उतै से हरा कै भगा दऔ। महोबे के पराक्रमियन की जीत होबै के बादईं राजकुमारी चन्द्रवलि ने और तमाम सारी जनियन ने अपईं-अपईं कजिलयन को खौंटो।

          जई घटना के बाद सें महोबे के संगै-संगै पूरे बुन्देलखण्ड में कजलियन को त्यौहार विजयोत्सव के रूप में मनाऔ जान लगौ है।  जा पूरी घटना यदि सुनौ तो सबईं की आँखन में तरईंयाँ भर आउतीं हैं पर अब लगत है कि हमायै इतै के लोगन कै लानै जे सब बातैं बेकार की हो गईं हैं। कभउँ सात-सात दिना तक चलबै बारै जा कजली त्यौहार कौ रंग अब एकई दिना में सबकै मन से उतर जात है। 

          चलौ कौनउ बात नईंयाँ फिरउ एक बार प्रेम से तौ बोल लैओ जय बुन्देलखण्ड।

सोमवार, 18 जुलाई 2011

अब है कछु करबे की बिरिया -- बुन्देली कविता

अब है कछु करबे की बिरिया,
आँखन से दूर निकर गई निंदिया।

उनके लानै नईंयाँ आफत,
मौज मजे को जीबन काटत,
पीकै घी तीनउ बिरिया।
अब है कछु करबे की बिरिया॥

अपनई मन की उनको करनै,
सच्ची बात पै कान न धरनै,
फुँफकारत जैसें नाग होए करिया।
अब है कछु करबे की बिरिया॥

हाथी घोड़ा पाले बैठे,
बिना काम कै ठाले बैठे,
इतै पालबो मुश्किल छिरिया।
अब है कछु करबे की बिरिया॥

कर लेयौ लाला अपयें मन कौ,
इक दिना तो मिलहै हमउकौ,
तारे गिनहौ तब भरी दुपहरिया,
अब है कछु करबे की बिरिया॥

रविवार, 17 जुलाई 2011

अब बुन्देली भाषा के लानेऊ लिख लेओ

    हमाये देश में हिन्दी को हाल तौ बैसेईं बिगड़ो धरो हतौ ऊपर से जै मोबाइलन और जा फेसबुकन के कारन से औरईं बुरौ हाल होत जा रऔ है। कोउ अब इतै हिन्दी में तो लिखबई नईं चाउत है। जिनै देखौ वे अंगरेजी में हिन्दी लिखकै अपने को हिन्दी को तीसमारखँ बताउन लगत हैं।
 
    हिन्दी की दसा तो बिगड़ई रई है बापै जा बुन्देली की तो दुर्दसई करकै धर दई है। इतै कछु दिनन से हम देख रए हैं कि जा टीवी में एक कौनउ कारकिरम आत है उतरन बामै एक बुन्देलन के नाम पै बुन्देली भाषा को हालई बिगाड़ै धरै हैं। ऐसैई टीवी जैसो हाल अपने आसपासई दिखत है। जिने देखो वो आजकल लेखक बनौ घूम रऔ है पर अपनी भाषा के लाने कछु नई कर रऔ है।
 
    हमाऔ जनम भारत में भऔ तो साथ में जा बुन्देलखण्डउ में हमाये प्रान बसत हैं। ऐसेई में हमाओ कछु तो फर्ज बनतई है कि हम इतै की भाषा के लानै, इतै के लानै कछु करें। हम सबनै बहुतईं बिचार करौ और सोचै कि आजकल जो इंटरनेट बहुतई अच्छो सिस्टम हौ गऔ है अपनी बात को सबकै सामनू लाबिन कै लानै। जोई बिचार करकै एक तौ ब्लाग बना दऔ है बुन्देली थाती के नाम से और जई ससुर फेसबकई पे एक ग्रुपउ सोई बना दऔ है।
 
    जामै हमाये संगे सबइसे पहलै दीपक मशाल जुड़े हतै, बेऊ बहुतई उतावलै हतै बुन्देलखण्ड के लानै और बुन्देली कै लानै कछु करबै कै लानै। अब औरउ जनै जासै जुड़हैं पर जुड़बै बालन से एक बिनती करहैं कि जामैं जिनै जुड़नै हौए जुड़ जाबैं बस लिखैं सिरफ और सिरफ बुन्देली भाषा में। चाहै बे बुन्देलखण्ड के बारै में लिखैं चाहै कवितई-किस्सा लिखैं, चाहैं कछु और बस बुन्देलियई में लिखैं। जासै जा धरती से खतम सी हो रई अपनी बुन्देली भाषा बचाबै कै लानै कछु अपनोउ योगदान हम सबई कर लैं।
 
    हमाऔ तो आज से जोई परयास हौहै कि जो कछु लिखौ जाए बो बुन्देलियई में लिखौ जायै। आप बुन्देलखण्ड के सबईं लोग जा ग्रुप से जुड़ौ और बुन्देली में लिख-लिखा कै अपनी भाषा को सबकै सामनू ले आऔ।

आप लोगन को अभै हमनै जासै ग्रुपमैं सामिल नईं करौ है कि आप अपनईं आप जासै जुड़ौ। कायकै हमैं जो न लगे कि हमने सबको जबरईं जोड़ लऔ है।